गुन गुनाया कितना
घुंघरू की तरह
फिर भी गूंजता नहीं
तेरे दिल पर मेरे लिए कुछ भी
तेरी यादों की धुन में
खोया हूँ मैं रात दिन
पर तेरी बातों के सिलसिले में
ढूंढूँ मैं अपना मकान
तेरे ख्वाबों की छाँव में
बसा हूँ मैं हर दिन
मगर तेरे सपनों की मस्ती में
बिखरता हूँ मैं, तनहाई
कहीं गुम है वो मंजिलें
जहाँ मिले तेरा साथ
पर आज भी दिल में उम्मीदें
बस तेरी ही बात।
रचना
जी आर कवियूर
24 03 2024
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