मालूम नहीं
नज्में नगमे लिखें हमने
तेरी यादों के सपने देखें
मालूम नहीं कब तलक
इस तरह चलती रहेगी
हमारे दास्तां खत्म ना हो
गाते गाते गला बैठ गया
जीते जीते जिंदगी की
आखिरी छोर तक पहुंच गए
हारा नहीं और हर माना नहीं
हमेशा जीत की तरह देखता रहा
विरासतए कितनी भी मिले
तेरे सिवा कुछ भी भाता नहीं
इस तन्हाई कब तक सहेंगे
तरसता रहा इन वादियों में
भुला ना पाया तेरी हर अदाएं
रास्ते लंबे होते गए
दिन रात एक कर गए
देखते ही देखते बीत गई
उम्मीदों की दास्तान
और कितना दिन मालूम नहीं
रचना
जी आर कवियूर
04 09 2023
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