अनमोल रहे
दिल चुरा लिया के
कब चली गई हो तु
कली जो खिल उठी है
जिंदगी का नजारा
बदल गई चंद अल्फाजों से
हां तेरी नजर से नजर मिले
गम गायब हो चुकी थी
गजलों की गुनगुना
उठा मन की
महफिल में सनम
बेकरारी सी हो गई
क्यों कहां है हरदम
इतनी भी लिखूं या गांवे
नहीं यादें तुम्हारी हर दम
खयालो में नगमे बन उत्तर आती है
हां तेरे सिवा नहीं
जीना मुमकिन नहीं है
हां यह सच है यारा
यह प्यार हमारा अनमोल रहे
लेखक
जी आर कवियूर
07 07 2023
No comments:
Post a Comment