सपनों में से...
कहां गए वो सपने
सच होकर भी बिखर गए
आते जाते दिनों की भीड़ में
गुमशुदा की तलाश पर
रोते रोते हस पड़े
अनहोनी राहों पर
तेरी आने की झलक देख
बैठा हूं बेकरारी संघ लिए
अगर मगर की ताना बुनकर
और नहीं सहा जाता
तनहाई की मोड पर
सपनों की सौदागर बनकर
आस की पोटली लिए
भटकता रहा इस भीड़ में
तू कहां चली गई
सपनों में से सच बनकर
रचना
जी आर कवियूर
05 07 2023
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