जैसे बिछड़े हुवे गमो के छाया में
जिसम और जान जाम बरी महफ़िल में
जिंदगी की इस मोड़ पर है
जताया न जासके यारों
आवो गायें बसंत ऋतु की आने पर
गम बुलासके होटो पर आई जो
नगमे उतारूँ ग़म हेट कलमसे
प्रेम बरी शाहीसे मनकी ठंडक
खूनकी रंग क्यों हो जाई नीला
बांसूरीकी धुनमें क्यों दुःखकी
राग रंग और बेवफायीकी आलम
ठहरे जो ओसकी बूंदो पे
न आई निंदिया भी
गीले हुवे तकिया
दिल भी रोए इतने
तेरी याद में सनम
जी आर कवियूर
28 02 2021
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