Saturday, May 14, 2011

हर गम पे -------- जी आर कवियूर

हर गम पे -------- जी आर कवियूर
बसा दू तेरी यादों को,  
दिल के बसेरा की  छाव पर 
मगर  तू नहीं जानती 
मन कितना मायूस है 
अलग कर दिया गया ,
हालात के अंगारों ने 
चल रहा था नंगे  पाव से ,
जलती हुई इन तनहाई भरी राहों  पर 
 ढूंढता गया हर चलने की आहट पर ,
उठती हुई इन लहरों पे 
पाई तेरी दिल्लगी 
शून्य  आंखें  ने दिखाई 
चमक दमक तेरी सितारों पे 
मुझे भा गई तेरी सतरंगी मुस्कान 
इन परछाईयो  में 
तेरी बोली  मैने सुनी 
कोयल की जुबानों से 
तेरी खुशबु लाई  हवा के झोंका ने  
बरसात की पहली बुन्दो से
ढलती   गई चाँदनी बादलो के उभरआने से 
 पुनः लुप्त हो गई बादलो के आने से 
निराश हो उठा मन,
पाई तुमे छलकते हुवे जाम के प्याले पे 
तेरी नशीली आंखें की चमक 
मद होश कर गई इन पंक्तियों से 
जिया न जा सकता जनम 
हर गम पे ,तेरे लिए जनम       
         

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