हर गम पे -------- जी आर कवियूर
बसा दू तेरी यादों को,
दिल के बसेरा की छाव पर ।
मगर तू नहीं जानती
मन कितना मायूस है
अलग कर दिया गया ,
हालात के अंगारों ने ।
चल रहा था नंगे पाव से ,
जलती हुई इन तनहाई भरी राहों पर ।
ढूंढता गया हर चलने की आहट पर ,
उठती हुई इन लहरों पे
पाई तेरी दिल्लगी ।
शून्य आंखें ने दिखाई
चमक दमक तेरी सितारों पे ।
मुझे भा गई तेरी सतरंगी मुस्कान
इन परछाईयो में ।
तेरी बोली मैने सुनी
कोयल की जुबानों से ।
तेरी खुशबु लाई हवा के झोंका ने
बरसात की पहली बुन्दो से ।
ढलती गई चाँदनी बादलो के उभरआने से
पुनः लुप्त हो गई बादलो के आने से ।
निराश हो उठा मन,
पाई तुमे छलकते हुवे जाम के प्याले पे
तेरी नशीली आंखें की चमक
मद होश कर गई इन पंक्तियों से
जिया न जा सकता जनम
हर गम पे ,तेरे लिए जनम ॥
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