Sunday, January 5, 2014

है अल्ला , है राम , है मसीहा - जी आर कवियुर

है अल्ला , है राम , है मसीहा  - जी आर कवियुर

सब जनो से बिन्ती है कि
मानवता के साथ और समभावना कि
रहन सहन से ही इस दुनियाँ कि
भलाई हो सक्ति है कि
यही रहे हमारी मद  और धर्म
यही सिखा गये मोहमद , ईसा और राम या कृष्ण
मगर देखियें इनके तोर तरी के और रंग संग ii

जेहाद के नाम से बजते है छल्ला
जुबान में अल्ला और
जेहन  में बल्ला
क्या करेगा बिसमिल्लाह
कितना भी उगते है गल्ला
खाते बस भेड़ का पिल्ला
रहमत नहीं माशा अल्ला ii

लेकर हरी का नाम
करते है कला काम
सोते रहते है बिना काम
चाहते दुसरो से बिना दाम
और बोलते है हो गये बदनाम
खाते है जुठे कस्मे लेकर माँ का नाम
हाय यह जन्तु  कहते है
इनको हिन्दू
है राम यह है इनके तन्तु ii

जप्ते रहते है अपनेको पापी
बनाने चाहते है लोगो को भी काफी
इनके चेहरे रहते है नक़ाबि
ईसा के रूप गले में डाले बनते है अनामी
इन को कहते है कामी
है मसीहा तुमे यह बनावेगै बेनामी

सब जनोसे बिन्ती है मेरी
मानवता के नाम पर न तेरी , न मेरी रहे ii

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